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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2677
आईएसबीएन :0

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हिन्दी काव्य का इतिहास

प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का संक्षेप में परिचय देते हुए आचार्य शुक्ल के इतिहास लेखन में योगदान की समीक्षा कीजिए।

उत्तर -

साहित्य भी उसी प्रकार गतिशील है। जिस प्रकार जीवन गतिशील होता है। गति के बिना निष्प्राण एवं मरनोन्मुख प्रवृत्ति की सीमा में बाँधकर रह जाता है। हिन्दी साहित्य के इतिहास को ही देखा जाये तो वह समय-समय पर हुए सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक एवं दार्शनिक प्रभावों एवं परिस्थितियों का परिणाम है। साहित्य की धारणा जब निरन्तर गतिशील बनी रहती है तो वह एक लम्बी यात्रा तय कर लेती है और आवश्यकता इस बात की होती है कि सृजित साहित्य की परम्परा को सुरक्षित रखा जाये। इस कार्य में सफलता प्राप्त करने हेतु जिन गुणों एवं तत्त्वों की आवश्यकता होती हैं वे हैं -

(1) संकलित सामग्री की व्यवस्था,
(2) व्यवस्थित सामग्री का क्रम निर्धारण,
(3) क्रम निर्धारण के पश्चात् उपलब्ध सामग्री का वर्गीकरण,
(4) वर्गीकृत सामग्री का प्रवृत्तिगत विश्लेषण |

हिन्दी साहित्य लेखन की परम्परा में गार्सा-द-तासी, जार्ज ग्रियर्सन आदि विदेशी विद्वानों का भी नाम रहा है जिन्होंने इतिहास लेखन की परम्परा में हिन्दी साहित्य के नाम को भी आगे बढ़ने का अवसर दिया। लेखन परम्परा में भारतीय किसानों में ठाकुर शिवसिंह सरोज, मिश्रबन्धु आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, डॉ. रामकुमार वर्मा, गणपति चन्द्रगुप्त, डॉ. नगेन्द्र, रामविलास शर्मा जैसे विद्वानों का नाम आता है। शुरूआत में गार्सा -द-तासी, शिवसिंह सरोज, जार्ज ग्रियर्सन तथा मिश्रबन्धुओं ने हिन्दी साहित्य के इतिहास को लिखने का प्रयास किया। इनका प्रयास सराहनीय रहा। इन्हीं प्रयासों को साकार एवं व्यवस्थित रूप आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने प्रदान किया। मिश्रबन्धुओं ने सर्वप्रथम ऐतिहासिक दृष्टिकोण अपनाते हुए हिन्दी साहित्य के इतिहास को प्रस्तुत किया है। इस ऐतिहासिक दृष्टिकोण में मिश्रबन्धु की सूक्ष्म चिन्तनशक्ति तटस्थ दृष्टि और नीर-क्षीर विवेक प्रज्ञा का पता चलता है। मिश्रबन्धुओं द्वारा प्रस्तुत हिन्दी साहित्य के इतिहास में निम्नलिखित उपलब्धियाँ और विशेषताएँ हैं.

(1) मिश्रबन्धुओं ने हिन्दी साहित्य के इतिहास को सन् संवत् की सीमाओं में बाँधकर जो कालखण्ड प्रस्तुत किये उनका नामकरण भी सोच-समझकर किया। उनके द्वारा प्रस्तावित कालखण्ड और उनके नामकरण निम्न प्रकार हैं -

प्रारम्भिक युग,
मध्य युग
आधुनिक युग।

उपर्युक्त नामकरण मिश्रबन्धुओं ने काल विशेष की प्रमुख प्रवृत्तियों के आधार पर किया है। इतना ही नहीं मिश्रबन्धुओं ने यह भी कहा है कि अमुक कालखंड में कौन-कौन प्रमुख कवि हुए हैं।

आचार्य शुक्ल का इतिहास - आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा लिखित हिन्दी साहित्य का इतिहास एक ऐसा इतिहास है जो कि अपनी प्रामाणिकता एवं वैज्ञानिकता में अकेला है। जब यह इतिहास लिखा गया तब सबसे पहले शुक्ल जी ने अपने से पूर्व के इतिहासों का मन्थन किया तदुपरान्त उन्होंने अपना वैज्ञानिक इतिहास प्रस्तुत किया।

आचार्य शुक्ल ने 600 वर्ष के इतिहास को निम्नलिखित कालखंडों में प्रस्तुत किया है

(1) वीरगाथाकाल संवत् 1075 से 1375 तक।
(2) भक्तिकाल संवत् 1375 से 1700 तक।
(3) रीतिकाल संवत् 1700 से 1900 तक।
(4) आधुनिक काल संवत् 1900 से आज तक या अधावधि।

उपर्युक्त काल विभाजन शुक्ल की मौलिक चिन्तन का परिणाम है। इस विभाजन की सबसे बडी उपलब्धि यह है कि प्रत्येक कालखंड की अवधि भी निश्चित कर दी गयी है। आचार्य शुक्ल के इतिहास की दूसरी विशेषता प्रवृत्तिगत अध्ययन सम्बन्धी है। इस अध्ययन में प्रत्येक कालखंड की प्रमुख प्रवृत्तियों के साथ-साथ गौण प्रवृत्तियों का विवेचन किया गया है जो अब तक के समस्त इतिहास लेखन की नवीनता है। आचार्य शुक्ल ने प्रत्येक कालखण्ड का नामकरण उस कालखंड में प्रमुख प्रवृत्तियों के आधार पर किया। उसकी मौलिकता यह है कि उन्होंने किसी दुराग्रह और पूर्वाग्रह से काम नहीं लिया है। शुक्ल जी के इतिहास में प्रत्येक खंड के अन्तर्गत प्रमुख और गौण सभी उपलब्ध प्रवृत्तियों का उनके कृतित्व और जन्म-मरण आदि के साथ किया है। आचार्य शुक्ल जी ने इतिहास में कुछ ऐसे तत्वों की ओर भी संकेत किया है जो विवेचित कालखण्ड की प्रमुख प्रवृत्तियों और प्रेरणाओं को स्पष्ट करते हैं।

मौलिकता और वैज्ञानिकता - शुक्ल जी ने प्रत्येक कालखण्ड के प्रमुख कवियों में इसे शीर्षस्थ कवि के आधार पर विवेचित कालखंड के प्रवर्तक के रूप में निर्धारित किया है। ऐसा करके आचार्य शुक्ल ने एक स्वस्थ परम्परा डाली है तथा आगे के इतिहासकारों के मौलिक विवेचन व चिन्ता का मार्ग प्रशस्त किया है। आचार्य शुक्ल के इतिहास में इतनी गहराई है कि प्रत्येक कालखंड के अन्तर्गत प्रवाहित छोटी-छोटी धाराओं का विवेचन सूक्ष्मता के साथ किया गया है। इतना सब होते हुए भी आचार्य शुक्ल का इतिहास आज के समीक्षकों और इतिहास लेखकों के मानस में अनेक प्रश्नों पर ध्यान देता है। निश्चय ही शुक्ल जी द्वारा लिखित इतिहास की सीमाएँ हैं और वे इतनी स्पष्ट हैं कि आज उन पर खुलकर विचार किया जा सकता है। यह सब होते हुए भी इतना निश्चित है कि यदि शुक्ल जी ने इतना व्यवस्थित और मौलिक इतिहास प्रस्तुत न किया होता तो आज जो नये-नये अनुसंधान हो रहे हैं, वे इस रूप में नहीं हो पाते। आचार्य शुक्ल के इतिहास में विद्वानों ने जो कमियाँ खोजी हैं, वे नये अनुसंधान के आलोक में ही अपना महत्त्व रखती हैं। वे प्रमुखता कालखण्डों के नामकरण उनके प्रवर्तकों तथा उनमें विवेचित रचनाओं के स्वरूप वैशिष्टय आदि से सम्बन्धित हैं। शुक्ल जी ने जो इतिहास प्रस्तुत किया है वह वैज्ञानिक और ऐतिहासिक तथ्यों से भरपूर होने पर भी आगे के इतिहासकारों के लिए चुनौती बना हुआ है। इस चुनौती को आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी एवं डॉ. रामकुमार वर्मा ने स्वीकार नहीं किया जो इन विद्वानों के इतिहास में देखी जा सकती है

डॉ. रामकुमार वर्मा - डॉ. रामकुमार वर्मा के ग्रन्थक नाम हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक ' इतिहास है। इस ग्रन्थ में वर्मा 693 ई. से 1693 की कालावधि को लेकर भक्तिकाल तक के इतिहास का आलोचनात्मक अध्ययन किया गया है। इन्होंने वीरगाथाकाल को चारणकाल नाम दिया है तथा इसके पूर्व के काल को सन्धिकरण नाम दिया है और इसमें अपभ्रंश के सारे कवियों को समेट लिया है और अपभ्रंश के प्रथम कवि सरहपा को हिन्दी साहित्य का आदि कवि माना है।

डॉ. धीरेन्द्र वर्मा - विभिन्न विद्वानों के सहयोग से लिखित एवं डॉ. धीरेन्द्र वर्मा द्वारा सम्पादित 'हिन्दी साहित्य' कई दृष्टियों से उल्लेखनीय है। इसमें साहित्य के इतिहास को तीन कालखण्डों में आदिकाल, मध्य काल तथा आधुनिक काल में विभक्त किया है। समस्त काव्य परम्पराओं का वर्णन स्वतंत्र रूप से जोड़ा गया है। काल विभाजन, विषय निरूपण एवं शैली आदि की दृष्टि से उक्त ग्रन्थ आचार्य शुक्ल के इतिहास से काफी भिन्न है। विभिन्न लेखकों द्वारा रचित होने के कारण इसमें एकरूपता और अन्विति का अभाव है।

नागरी प्रचारिणी सभा का योगदान - नागरी प्रचारिणी सभा का योगदान हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन में अवश्य उल्लेखनीय है। नागरी प्रचारिणी से प्रकाशित हिन्दी साहित्य का इतिहास 16 खण्डों में विभक्त है। ये सभी खण्ड हिन्दी साहित्य के इतिहास को विस्तृत भूमिका प्रदान करते हैं। प्रत्येक खण्ड अलग-अलग काव्य प्रवृत्तियों और तत्कालीन परिस्थितियों की विवेचन करता हुआ समग्रता के साथ प्रस्तुत हुआ है। उल्लेखनीय बात यह है कि नागरी प्रचारिणी द्वारा प्रकाशित हिन्दी साहित्य का वृहत् इतिहास अभी तक पूरा प्रकाशित होकर सामने नहीं आया। इसके 16 खण्डों में से केवल दस खण्ड की हमारे सामने आ सके हैं, जो 16 खण्ड इस इतिहास को पूर्णतया प्रदान करेंगे, वे निम्न प्रकार हैं -

(1) प्रथम भाग - हिन्दी साहित्य की पीठिका,
(2) हिन्दी भाषा का विकास,
(3) हिन्दी साहित्य का उदय और विकास।
(4) भक्तिकाल निर्गुण साहित्य,
(5) भक्तिकाल का सगुण भक्ति साहित्य,
(6) शृंगारकाल की रीति मुक्त काव्य,
(7) हिन्दी साहित्य का अभ्युत्थान (भारतेन्दु युग),
(8) द्विवेदी युग,
(9) हिन्दी साहित्य का उत्कर्षकाल, (
10) हिन्दी साहित्य का नाटक साहित्य,
(11) हिन्दी का उपन्यास कक्षा और आख्यिका साहित्य,
(12) समालोचना एवं निबन्ध,
(13) अद्यतन काल,
(14) हिन्दी में शास्त्र तथा विज्ञान,
(15) हिन्दी का लोक साहित्य।

नागरी प्रचारिणी में प्रकाशित इतिहास की श्रृंखला में, "भारतीय हिन्दी परिषद द्वारा प्रकाशित इतिहास का नाम भी आता है। वह इतिहास दो खंडों में विभक्त है। प्रथम खण्ड में हिन्दी साहित्य की भूमिका प्रस्तुत की गई है, एवं द्वितीय खंड में साहित्यिक प्रवृत्तियों के आधार पर साहित्य की विभिन्न धाराओं का विवेचन प्रस्तुत किया गया है। अपनी सीमाओं में बँधा हुआ होने के कारण यह इतिहास अधिक लोकप्रिय नहीं हुआ है।

इन इतिहासकारों के पश्चात् डॉ. गणपति गुप्त एवं डॉ. शिवकुमार वर्मा द्वारा लिखित क्रमशः हिन्दी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास तथा हिन्दी साहित्य युग और प्रवृत्तियाँ भी प्रकाशित हुई हैं। डॉ. गणपति चन्द्र का इतिहास प्रवृत्तियों के आधार पर लिखा गया है और उसमें किसी विशेष प्रवृत्ति का विवेचन प्रारम्भ से लेकर अन्त तक कर दिया गया है। इसमें लेखक ने वैज्ञानिकता का दावा किया है. किन्तु पढ़ने पर पता चलता है कि यह इतिहास समस्याओं को सुलझाने की अपेक्षा उलझाता भी है। डॉ. शिवकुमार शर्मा का हिन्दी साहित्य युग और प्रवृत्तियाँ छात्रोपयोगी हैं। इसमें युग और प्रवृत्तियों के आधार पर कालों का विवेचन किया गया है और आचार्य शुक्ल की परम्परा को स्वीकार किया गया है।

हिन्दी साहित्य के इतिहास की परम्परा में प्रमुखतः ये ही इतिहास लिखे गये हैं। यों कुछ छोटे-छोटे इतिहास भी उपलब्ध हैं, किन्तु मौलिकता की दृष्टि से वे परीक्षापयोगी सामग्री ही प्रस्तुत करते हैं। आधुनिक युग में इतिहास लेखन का कार्य पर्याप्त जटिल हो गया है। अतः कोई भी विद्वान समूचे इतिहास लेखन का श्रेय नहीं उठाना चाहता है। ऐसी स्थिति में प्रत्येक विधा और प्रत्येक काल को आधार बनाकर ही कुछ इतिहास लिखे जा रहे हैं। इस प्रकार के लेखन में प्रत्येक विधा का विशेषण अपना-अपना योगदान देना चाहता है। ऐसी स्थिति में इस प्रकार उन्हें इतिहास मानने में भी संकोच होता है।

डॉ. नगेन्द्र द्वारा सम्पादित इतिहास - आधुनिक युग में इतिहास लेखन के क्षेत्र में कुछ सहयोगी लेखन के प्रयास भी सामने आ रहे हैं। इन प्रयासों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण डॉ. नगेन्द्र द्वारा सम्पादित हिन्दी साहित्य का इतिहास विशेष उल्लेखनीय है। यह इतिहास एक दर्जन से भी अधिक विद्वानों द्वारा लिखा गया है। सम्पादक का दावा है कि यह प्रत्येक विधा व खण्ड के विशेषज्ञ एवं अधिकारी विद्वान द्वारा लिखा गया है। लगभग एक हजार पृष्ठों का यह इतिहास चार खंडों में हैं जो हिन्दी साहित्य के इतिहास के चारों युगों के सूचक हैं।

निष्कर्ष - उपर्युक्त विवेचना के आधार पर कहा जा सकता है कि हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा अत्यन्त प्राचीन है। जिस इतिहास लेखन की परम्परा की शुरूआत मार्सा -द- तासी ने अव्यवस्थित रूप से लिया था उसे व्यवस्था और वैज्ञानिकता प्रदान करने का कार्य आचार्य शुक्ल, डॉ. रामुकमार वर्मा ने किया, वस्तुतः हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की आवश्यकता तो आज भी बनी हुई है किन्तु इस क्षेत्र में अब स्वतंत्र विधाओं के रूप में कार्य हो रहा है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- इतिहास क्या है? इतिहास की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी साहित्य का आरम्भ आप कब से मानते हैं और क्यों?
  3. प्रश्न- इतिहास दर्शन और साहित्येतिहास का संक्षेप में विश्लेषण कीजिए।
  4. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व की समीक्षा कीजिए।
  5. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के सामान्य सिद्धान्त का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  7. प्रश्न- साहित्य के इतिहास दर्शन पर भारतीय एवं पाश्चात्य दृष्टिकोण का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का विश्लेषण कीजिए।
  9. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का संक्षेप में परिचय देते हुए आचार्य शुक्ल के इतिहास लेखन में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  10. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन के आधार पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  11. प्रश्न- इतिहास लेखन की समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की समस्या का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की पद्धतियों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  13. प्रश्न- सर जार्ज ग्रियर्सन के साहित्य के इतिहास लेखन पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  14. प्रश्न- नागरी प्रचारिणी सभा काशी द्वारा 16 खंडों में प्रकाशित हिन्दी साहित्य के वृहत इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  15. प्रश्न- हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रारम्भिक तिथि की समस्या पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- साहित्यकारों के चयन एवं उनके जीवन वृत्त की समस्या का इतिहास लेखन पर पड़ने वाले प्रभाव का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  17. प्रश्न- हिन्दी साहित्येतिहास काल विभाजन एवं नामकरण की समस्या का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास का काल विभाजन आप किस आधार पर करेंगे? आचार्य शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इतिहास का जो विभाजन किया है क्या आप उससे सहमत हैं? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
  19. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास में काल सीमा सम्बन्धी मतभेदों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  21. प्रश्न- काल विभाजन की प्रचलित पद्धतियों को संक्षेप में लिखिए।
  22. प्रश्न- रासो काव्य परम्परा में पृथ्वीराज रासो का स्थान निर्धारित कीजिए।
  23. प्रश्न- रासो शब्द की व्युत्पत्ति बताते हुए रासो काव्य परम्परा की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए - (1) परमाल रासो (3) बीसलदेव रासो (2) खुमान रासो (4) पृथ्वीराज रासो
  25. प्रश्न- रासो ग्रन्थ की प्रामाणिकता पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  26. प्रश्न- विद्यापति भक्त कवि है या शृंगारी? पक्ष अथवा विपक्ष में तर्क दीजिए।
  27. प्रश्न- "विद्यापति हिन्दी परम्परा के कवि है, किसी अन्य भाषा के नहीं।' इस कथन की पुष्टि करते हुए उनकी काव्य भाषा का विश्लेषण कीजिए।
  28. प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  29. प्रश्न- लोक गायक जगनिक पर प्रकाश डालिए।
  30. प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  31. प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
  33. प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षित परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  34. प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
  35. प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
  36. प्रश्न- विद्यापति की भक्ति भावना का विवेचन कीजिए।
  37. प्रश्न- हिन्दी साहित्य की भक्तिकालीन परिस्थितियों की विवेचना कीजिए।
  38. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के उदय के कारणों की समीक्षा कीजिए।
  39. प्रश्न- भक्तिकाल को हिन्दी साहित्य का स्वर्णयुग क्यों कहते हैं? सकारण उत्तर दीजिए।
  40. प्रश्न- सन्त काव्य परम्परा में कबीर के योगदान को स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- मध्यकालीन हिन्दी सन्त काव्य परम्परा का उल्लेख करते हुए प्रमुख सन्तों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  42. प्रश्न- हिन्दी में सूफी प्रेमाख्यानक परम्परा का उल्लेख करते हुए उसमें मलिक मुहम्मद जायसी के पद्मावत का स्थान निरूपित कीजिए।
  43. प्रश्न- कबीर के रहस्यवाद की समीक्षात्मक आलोचना कीजिए।
  44. प्रश्न- महाकवि सूरदास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की समीक्षा कीजिए।
  45. प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
  46. प्रश्न- भक्तिकाल में उच्चकोटि के काव्य रचना पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- 'भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  48. प्रश्न- जायसी की रचनाओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  49. प्रश्न- सूफी काव्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  50. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए -
  51. प्रश्न- तुलसीदास कृत रामचरितमानस पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  52. प्रश्न- गोस्वामी तुलसीदास के जीवन चरित्र एवं रचनाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
  54. प्रश्न- कबीर सच्चे माने में समाज सुधारक थे। स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  57. प्रश्न- हिन्दी की निर्गुण और सगुण काव्यधाराओं की सामान्य विशेषताओं का परिचय देते हुए हिन्दी के भक्ति साहित्य के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- निर्गुण भक्तिकाव्य परम्परा में ज्ञानाश्रयी शाखा के कवियों के काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
  59. प्रश्न- कबीर की भाषा 'पंचमेल खिचड़ी' है। सउदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  60. प्रश्न- निर्गुण भक्ति शाखा एवं सगुण भक्ति काव्य का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  61. प्रश्न- रीतिकालीन ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक पृष्ठभूमि की समीक्षा कीजिए।
  62. प्रश्न- रीतिकालीन कवियों के आचार्यत्व पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
  63. प्रश्न- रीतिकालीन प्रमुख प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिए तथा तत्कालीन परिस्थितियों से उनका सामंजस्य स्थापित कीजिए।
  64. प्रश्न- रीति से अभिप्राय स्पष्ट करते हुए रीतिकाल के नामकरण पर विचार कीजिए।
  65. प्रश्न- रीतिकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों या विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  66. प्रश्न- रीतिकालीन रीतिमुक्त काव्यधारा के प्रमुख कवियों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार दीजिए कि प्रत्येक कवि का वैशिष्ट्य उद्घाटित हो जाये।
  67. प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  68. प्रश्न- रीतिबद्ध काव्यधारा और रीतिमुक्त काव्यधारा में भेद स्पष्ट कीजिए।
  69. प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य विशेषताएँ बताइये।
  70. प्रश्न- रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
  71. प्रश्न- रीतिकाल के नामकरण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  72. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्य के स्रोत को संक्षेप में बताइये।
  73. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्यिक ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  74. प्रश्न- रीतिकाल की सांस्कृतिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए।
  75. प्रश्न- बिहारी के साहित्यिक व्यक्तित्व की संक्षेप मे विवेचना कीजिए।
  76. प्रश्न- रीतिकालीन आचार्य कुलपति मिश्र के साहित्यिक जीवन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  77. प्रश्न- रीतिकालीन कवि बोधा के कवित्व पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- रीतिकालीन कवि मतिराम के साहित्यिक जीवन पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- सन्त कवि रज्जब पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  80. प्रश्न- आधुनिककाल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
  81. प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  82. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
  83. प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
  84. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों की सोदाहरण विवेचना कीजिए।
  85. प्रश्न- भारतेन्दु युगीन काव्य की भावगत एवं कलागत सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- भारतेन्दु युग की समय सीमा एवं प्रमुख साहित्यकारों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  87. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य की राजभक्ति पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य का संक्षेप में मूल्यांकन कीजिए।
  89. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन गद्यसाहित्य का संक्षेप में मूल्यांकान कीजिए।
  90. प्रश्न- भारतेन्दु युग की विशेषताएँ बताइये।
  91. प्रश्न- द्विवेदी युग का परिचय देते हुए इस युग के हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  92. प्रश्न- द्विवेदी युगीन काव्य की विशेषताओं का सोदाहरण मूल्यांकन कीजिए।
  93. प्रश्न- द्विवेदी युगीन हिन्दी कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
  94. प्रश्न- द्विवेदी युग की छः प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
  95. प्रश्न- द्विवेदीयुगीन भाषा व कलात्मकता पर प्रकाश डालिए।
  96. प्रश्न- छायावाद का अर्थ और स्वरूप परिभाषित कीजिए तथा बताइये कि इसका उद्भव किस परिवेश में हुआ?
  97. प्रश्न- छायावाद के प्रमुख कवि और उनके काव्यों पर प्रकाश डालिए।
  98. प्रश्न- छायावादी काव्य की मूलभूत विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  99. प्रश्न- छायावादी रहस्यवादी काव्यधारा का संक्षिप्त उल्लेख करते हुए छायावाद के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  100. प्रश्न- छायावादी युगीन काव्य में राष्ट्रीय काव्यधारा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  101. प्रश्न- 'कवि 'कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जायें। स्वच्छन्दतावाद या रोमांटिसिज्म किसे कहते हैं?
  102. प्रश्न- छायावाद के रहस्यानुभूति पर प्रकाश डालिए।
  103. प्रश्न- छायावादी काव्य में अभिव्यक्त नारी सौन्दर्य एवं प्रेम चित्रण पर टिप्पणी कीजिए।
  104. प्रश्न- छायावाद की काव्यगत विशेषताएँ बताइये।
  105. प्रश्न- छायावादी काव्यधारा का क्यों पतन हुआ?
  106. प्रश्न- प्रगतिवाद के अर्थ एवं स्वरूप को स्पष्ट करते हुए प्रगतिवाद के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  107. प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- प्रयोगवाद के नामकरण एवं स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए इसके उद्भव के कारणों का विश्लेषण कीजिए।
  109. प्रश्न- प्रयोगवाद की परिभाषा देते हुए उसकी साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  110. प्रश्न- 'नयी कविता' की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  111. प्रश्न- समसामयिक कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों का समीक्षात्मक परिचय दीजिए।
  112. प्रश्न- प्रगतिवाद का परिचय दीजिए।
  113. प्रश्न- प्रगतिवाद की पाँच सामान्य विशेषताएँ लिखिए।
  114. प्रश्न- प्रयोगवाद का क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
  115. प्रश्न- प्रयोगवाद और नई कविता क्या है?
  116. प्रश्न- 'नई कविता' से क्या तात्पर्य है?
  117. प्रश्न- प्रयोगवाद और नयी कविता के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
  118. प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता तथा उनके कवियों के नाम लिखिए।
  119. प्रश्न- समकालीन कविता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

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